सद्गुरु का काम है तुम्हारे भीतर सोये हुए गुरु को जगा देना, बस। तब गुरु का काम पूरा हो गया। अब अगर वह इंच-इंच तुम्हारे जीवन की व्यवस्था बिठाता रहे तो तुम्हारे जीवन में कभी व्यवस्था आ ही नहीं सकती। और रोज शंकाएं खड़ी होंगी और रोज अड़चने आयेंगी। और अगर तुम बंधे नियमों से जियोगे तो जिंदगी तो रोज बदल जाती है। तुम्हारे नियम होंगेबंधे-बंधाए, उनका जिंदगी से कोई तालमेल नहीं होगा। तिम रोज अड़चन में पाओगे अपने को कि अब क्या करूं?
जिंदगी बदल गयी, नियम पुराना। नियम बना था जब तुम बैलगाड़ी में बैठते थे और काम ला रहे हो अब जब कि तुम हवाई जहाज में उड़ रहे हो। इसलिए कोशिश सद्गुरु तुम्हें बाह्य व्यवस्था नहीं देता, अन्तर-बोध देता है।
रैदास कहते हैं: 'जब मन मिल्यौ आस नहिं तन की तब को गावनहारा।' तुम्हारा मन परमात्मा से मिल जाए, बस काम हो गया। फिर न कोई गीत है न कोई गाने वाला है, न गाने का कोई सवाल है। फिर कहने को कुल भी नहीं। फिर तुम एक सहज स्फूर्त जीवन जियोगे, जिस पर ऊपर से कुछ भी आरोपित नहीं होता---अंतस से प्रवाहित होता है।
'जबलगि नदी न समुंद्र समावै, तब लगि बढ़ै हंकारा।'
नदी जब तक समुद्र में नहीं गिर जाती तब तक बड़ा शोर मचता है। 'हंकारा' शब्द दो अर्थ रखता है: एक तो शोरगुल और एक अहंकार । दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
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मन चंगा तो कठौती में गंगा!
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जिंदगी बदल गयी, नियम पुराना। नियम बना था जब तुम बैलगाड़ी में बैठते थे और काम ला रहे हो अब जब कि तुम हवाई जहाज में उड़ रहे हो। इसलिए कोशिश सद्गुरु तुम्हें बाह्य व्यवस्था नहीं देता, अन्तर-बोध देता है।
रैदास कहते हैं: 'जब मन मिल्यौ आस नहिं तन की तब को गावनहारा।' तुम्हारा मन परमात्मा से मिल जाए, बस काम हो गया। फिर न कोई गीत है न कोई गाने वाला है, न गाने का कोई सवाल है। फिर कहने को कुल भी नहीं। फिर तुम एक सहज स्फूर्त जीवन जियोगे, जिस पर ऊपर से कुछ भी आरोपित नहीं होता---अंतस से प्रवाहित होता है।
'जबलगि नदी न समुंद्र समावै, तब लगि बढ़ै हंकारा।'
नदी जब तक समुद्र में नहीं गिर जाती तब तक बड़ा शोर मचता है। 'हंकारा' शब्द दो अर्थ रखता है: एक तो शोरगुल और एक अहंकार । दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
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मन चंगा तो कठौती में गंगा!
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